अष्ट लक्ष्मी मंत्र साधना

अष्ट लक्ष्मी मंत्र Lakshmi Mantra साधना

ऋषि विश्वामित्र के कठोर आदेश अनुसार लक्ष्मी साधना गोपनीय एवं दुर्लभ है तथा इसे नास्तिक धर्म भ्रष्ट लोगों से गुप्त ही रखना चाहिए, तथा जो शिव धर्म हिन्दू के प्रचार प्रसार करने में ही इस्तेमाल करना चाहिए ।

ऐसा शास्त्रोक्त वर्णित है कि समुद्र-मंथन से पूर्व सभी देवता निर्धन और ऐश्वर्य विहीन हो गए थे तथा लक्ष्मी के प्रकट होने पर देवराज इंद्र ने महालक्ष्मी की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर महालक्ष्मी ने देवराज इंद्र को वरदान दिया कि तुम्हारे द्वारा दिए गए द्वादशाक्षर मंत्र का जो व्यक्ति नियमित रूप से प्रतिदिन तीनों संध्याओं में भक्तिपूर्वक जप करेगा, वह कुबेर सदृश ऐश्वर्य युक्त हो जाएगा।´

ऐसा शास्त्रों में वर्णन आता है के महालक्ष्मी के आठ स्वरुप है। लक्ष्मी जी के ये आठ स्वरुप जीवन की आधारशिला है। इन आठों स्वरूपों में लक्ष्मी जी जीवन के आठ अलग-अलग वर्गों से जुड़ी हुई हैं। इन आठ लक्ष्मी की साधना करने से मानव जीवन सफल हो जाता है। अष्ट लक्ष्मी और उनके मूल बीज मंत्र इस प्रकार है।अष्ट लक्ष्मी साधना का उद्देश जीवन में धन के अभाव को मिटा देना है। इस साधना से भक्त कर्जे के चक्र्व्ह्यु से बहार आ जाता है। आयु में वृद्धि होती है। बुद्धि कुशाग्र होती है। परिवार में खुशाली आती है। समाज में सम्मान प्राप्त होता है। प्रणय और भोग का सुख मिलता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा होता है और जीवन में वैभव आता है।

अष्ट लक्ष्मी साधना विधि:

शुक्रवार की रात तकरीबन 09:00 बजे से 10:30 बजे के बीच गुलाबी कपड़े पहने और गुलाबी आसान का प्रयोग करें। गुलाबी कपड़े पर मंत्र सिद्ध श्री अष्ट लक्ष्मी यंत्र अथवा श्री यंत्र या अष्ट लक्ष्मी का मंत्र सिद्ध मूर्ति स्थापित करें। किसी भी थाली में गाय के घी के 8 दीपक जलाएं। गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। लाल फूलो की माला चढ़ाएं। मावे की बर्फी का भोग लगाएं। अष्टगंध से श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी के चित्र पर तिलक करें और मंत्र सिद्ध कमलगट्टे की माला हाथ में लेकर इस मंत्र का यथासंभव जाप करें।

1. श्री आदि लक्ष्मी – ये जीवन के प्रारंभ और आयु को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है –

ॐ श्रीं।।

2. श्री धान्य लक्ष्मी – ये जीवन में धन और धान्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है –

ॐ श्रीं क्लीं।।

3. श्री धैर्य लक्ष्मी – ये जीवन में आत्मबल और धैर्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है –

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

4. श्री गज लक्ष्मी – ये जीवन में स्वास्थ और बल को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है –

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

5. श्री संतान लक्ष्मी – ये जीवन में परिवार और संतान को संबोधित करती है तथा इनका

मूल मंत्र है –

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं।।

6. श्री विजय लक्ष्मी यां वीर लक्ष्मी – ये जीवन में जीत और वर्चस्व को संबोधित करती है तथा इनका मूल

मंत्र है –

ॐ क्लीं ॐ।।

7. श्री विद्या लक्ष्मी – ये जीवन में बुद्धि और ज्ञान को संबोधित करती है तथा इनका

मूल मंत्र है –

ॐ ऐं ॐ।।

8. श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी – ये जीवन में प्रणय और भोग को संबोधित करती है तथा इनका

मूल मंत्र है –

ॐ श्रीं श्रीं।।

Notice – लक्ष्मी जी उन्ही साधकों पर जल्दी प्रसन्न होती हैं जो धन द्वारा निस्वार्थ भाव से जन कल्याण तथा शिव हिन्दू धर्म प्रचार प्रसार में सेवा कर रहे होते हैं.

Lakshmi Mantra

लक्ष्मी जी आरती

ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
सब बोलो लक्ष्मी माता की जय, लक्ष्मी नारायण की जय।
आरती पूरी होने के बाद तुलसी में आरती जरूर दिखाना चाहिए, इसके बाद घर के लोगों को आरती लेनी चाहिए।

लक्ष्मी कवच

लक्ष्मी Lakshmi कवच
|| श्री लक्ष्मी कवचं ||
लक्ष्मी में चाग्रतः पातु कमला पातु पृष्ठतः |
नारायणी शीर्ष देशे सर्वाङ्गे श्री स्वरूपिणी || १ ||
राम पत्नी तु प्रत्यङ्गे रामेश्वरी सदाऽवतु |
विशालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणी तथा || २ ||
जय दात्री धन दात्री पाशाक्ष मालिनी शुभा |
हरी प्रिया हरी रामा जयँकरी महोदरी || ३ ||
कृष्ण परायणा देवी श्रीकृष्ण मनमोहिनी |
जयँकरी महारौद्री सिद्धिदात्री शुभङ्करि || ४ ||
सुखदा मोक्षदा देवी चित्र कूट निवासिनी |
भयं हरतु भक्तानां भव बन्धं विमुञ्चतु || ५ ||
कवचं तन्महापुण्यं यः पठेद भक्ति संयुतः |
त्रिसन्ध्यमेक सन्ध्यं वा मुच्यते सर्व संकटात || ६ |||| फलश्रुतिः ||
कवचास्य पठनं धनपुत्र विवर्द्धनं |
भीति विनाशनं चैव त्रिषु लोकेषु कीर्तितं || ७ ||
भूर्जपत्रे समालिख्य रोचना कुंकुमेन तु |
धारणाद गलदेशे च सर्व सिद्धिर्भविष्यति || ८ ||
अपुत्रो लभते पुत्रं धनार्थी लभते धनं |
मोक्षार्थी मोक्षमाप्नोति कवचस्य प्रसादतः || ९ ||
गर्भिणी लभते पुत्रं वन्ध्या च गर्भिणी भवेत् |
धारयेद यदि कण्ठे च अथवा वाम बाहुके || १० ||
यः पठेन्नियतो भक्त्या स एव विष्णु वद भवेत् |
मृत्यु व्याधि भयं तस्य नास्ति किञ्चिन्मही तले || ११ ||
पठेद वा पाठयेद वापि शुणुयाच्छ्रावयेदपि |
सर्व पाप विमुक्तः स लभते परमां गतिम् || १२ ||
सङ्कटे विपदे घोरे तथा च गहने वने |
राजद्वारे च नौकायां तथा च रण मध्यतः || १३ ||
पठनाद धारणादस्य जयमाप्नोति निश्चितम |
अपुत्रा च तथा वन्ध्या त्रिपक्षं शृणुयाद यदि || १४ ||
सुपुत्रं लभते सा तु दीर्घायुष्कं यशस्विनीं |
शुणुयाद यः शुद्ध-बुद्ध्या द्वौ मासौ विप्र वक्त्रतः || १५ ||सर्वान कामान वाप्नोति सर्व बन्धाद विमुच्यते |
मृतवत्सा जीव वत्सा त्रिमासं श्रवणं यदि || १६ ||
रोगी रोगाद विमुच्यते पठनान्मास मध्यतः |
लिखित्वा भूर्जपत्रे च अथवा ताड़पत्रके || १७ ||
स्थापयेन्नित्यं गेहे नाग्नि चौर भयं क्वचित्त |
शृणुयाद धारयेद वापि पठेद वा पाठयेदपि || १८ ||
यः पुमान सततं तस्मिन् प्रसन्नाः सर्व देवताः |
बहुना किमिहोक्तेन सर्व जीवेश्वरेश्वरी || १९ ||
आद्याशक्तिः सदालक्ष्मीः भक्तानुग्रह कारिणी |
धारके पाठके चैव निश्चला निवसेद ध्रुवं || २० ||
|| श्री तंत्रोक्तं श्रीलक्ष्मी कवचम सम्पूर्णं ||श्री लक्ष्मी कवच

माँ लक्ष्मी का यह कवच सर्वश्रेष्ठ है और सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करनेवाला है | गृहस्थ मनुष्य को अवश्य यह पाठ करना चाहिए | इस कवच के पाठ से पुत्र और धन की प्राप्ति होती है | भय दूर होकर निर्भय हो जाता है | इस कवच के प्रसाद से अपुत्र को पुत्र प्राप्त होता है | धन की इच्छा वालो को धन प्राप्त होता है | मोक्ष की इच्छा वाला मोक्ष प्राप्त करता है | यदि स्त्रियाँ इस कवच को लिखकर बाई भुजा में इस कवच को धारण करे तो गर्भवती महिला को उत्तम पुत्र प्राप्त होता है | बाँझ स्त्री भी गर्भवती होती है अर्थात उसे संतान प्राप्ति के द्वार खुल जाते है | जो मनुष्य नियमित रूप से भक्ति सहित इस कवच का पाठ करता है वो स्वयं विष्णु समान तेजस्वी होता है | मृत्यु का उसे कोई भय नहीं रहता | यह कवच जो स्वयं सुनता है या दुसरो को सुनाता है वह सम्पूर्ण पापो से मुक्त हो जाता है | परमगति को प्राप्त होता है | सङ्कट में,घोर सङ्कट में,महा भयंकर आपत्ति में,गहन वन में,राजमार्ग,जलमार्ग,में इस कवच का पाठ करता है वो सर्वत्र विजय प्राप्त करता है |बाँझ स्त्री अगर इस कवच का अगर तीन पक्ष यानी डेढ़ महीने तक जो कोई स्त्री इस कवच को सुनती है या पाठ करती है उन्हें तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है | जो मनुष्य शुद्ध मन से दो महीने तक ब्राह्मण के मुख से इस कवच को सुनता है उसकी सभी कामना पूर्ण होती है वह सभी बंधनो से मुक्त हो जाता है | जिस स्त्री को संतान होने के बाद जीते नहीं है वो तीन महीने अगर पाठ करे या सुने तो उसके पुत्र जीवित रहते है | रोगी मनुष्य इसका एक महीने तक पाठ करे तो वो सभी रोगो से मुक्त हो जाता है | जो मनुष्य इस कह को भोजपत्र या ताड़पत्र पर इसे लिखकर अपने घर में स्थापित करता है उसे ना अग्निका,ना चोरो का,भय रहता है | जो मनुष्य स्वयं इस कवच को पढता है और दुसरो से पढ़वाता है उस मनुष्य पर सभी देवी-देवता प्रसन्न हो जाते है | और इस कवच के पाठ से माँ लक्ष्मी स्थिर निवास करने लगती है |

लक्ष्मी चालीसा

श्री लक्ष्मी चालीसा Lakshmi
॥दोहा॥

मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।

मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस॥

हे मां लक्ष्मी दया करके मेरे हृद्य में वास करो हे मां मेरी मनोकामनाओं को सिद्ध कर मेरी आशाओं को पूर्ण करो।

॥सोरठा॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।

सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदम्बिका॥

हे मां मेरी यही अरदास है, मैं हाथ जोड़ कर बस यही प्रार्थना कर रहा हूं हर प्रकार से आप मेरे यहां निवास करें। हे जननी, हे मां जगदम्बिका आपकी जय हो।॥चौपाई॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

हे सागर पुत्री मैं आपका ही स्मरण करता/करती हूं, मुझे ज्ञान, बुद्धि और विद्या का दान दो। आपके समान उपकारी दूसरा कोई नहीं है। हर विधि से हमारी आस पूरी हों, हे जगत जननी जगदम्बा आपकी जय हो, आप ही सबको सहारा देने वाली हो, सबकी सहायक हो। आप ही घट-घट में वास करती हैं, ये हमारी आपसे खास विनती है। हे संसार को जन्म देने वाली सागर पुत्री आप गरीबों का कल्याण करती हैं।

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥हे मां महारानी हम हर रोज आपकी विनती करते हैं, हे जगत जननी भवानी, सब पर अपनी कृपा करो। आपकी स्तुति हम किस प्रकार करें। हे मां हमारे अपराधों को भुलाकर हमारी सुध लें। मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हुए हे जग जननी, मेरी विनती सुन लीजिये। आप ज्ञान, बुद्धि व सुख प्रदान करने वाली हैं, आपकी जय हो, हे मां हमारे संकटों का हरण करो।

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

जब भगवान विष्णु ने दुध के सागर में मंथन करवाया तो उसमें से चौदह रत्न प्राप्त हुए। हे सुखरासी, उन्हीं चौदह रत्नों में से एक आप भी थी जिन्होंने भगवान विष्णु की दासी बन उनकी सेवा की। जब भी भगवान विष्णु ने जहां भी जन्म लिया अर्थात जब भी भगवान विष्णु ने अवतार लिया आपने भी रुप बदलकर उनकी सेवा की। स्वयं भगवान विष्णु ने मानव रुप में जब अयोध्या में जन्म लिया तब आप भी जनकपुरी में प्रगट हुई और सेवा कर उनके दिल के करीब रही, अंतर्यामी भगवान विष्णु ने आपको अपनाया, पूरा विश्व जानता है कि आप ही तीनों लोकों की स्वामी हैं।तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वाञ्छित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥

आपके समान और कोई दूसरी शक्ति नहीं आ सकती। आपकी महिमा का कितना ही बखान करें लेकिन वह कहने में नहीं आ सकता अर्थात आपकी महिमा अकथ है। जो भी मन, वचन और कर्म से आपका सेवक है, उसके मन की हर इच्छा पूरी होती है। छल, कपट और चतुराई को तज कर विविध प्रकार से मन लगाकर आपकी पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा मैं और क्या कहूं, जो भी इस पाठ को मन लगाकर करता है, उसे कोई कष्ट नहीं मिलता व मनवांछित फल प्राप्त होता है।

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बन्धन हारिणी॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

पुत्रहीन अरु सम्पति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥हे दुखों का निवारण करने वाली मां आपकी जय हो, तीनों प्रकार के तापों सहित सारी भव बाधाओं से मुक्ति दिलाती हो अर्थात आप तमाम बंधनों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करती हो। जो भी चालीसा को पढ़ता है, पढ़ाता है या फिर ध्यान लगाकर सुनता और सुनाता है, उसे किसी तरह का रोग नहीं सताता, उसे पुत्र आदि धन संपत्ति भी प्राप्त होती है। पुत्र एवं संपत्ति हीन हों अथवा अंधा, बहरा, कोढि या फिर बहुत ही गरीब ही क्यों न हो यदि वह ब्राह्मण को बुलाकर आपका पाठ करवाता है और दिल में किसी भी प्रकार की शंका नहीं रखता अर्थात पूरे विश्वास के साथ पाठ करवाता है। चालीस दिनों तक पाठ करवाए तो हे मां लक्ष्मी आप उस पर अपनी दया बरसाती हैं।

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

चालीस दिनों तक आपका पाठ करवाने वाला सुख-समृद्धि व बहुत सी संपत्ती प्राप्त करता है। उसे किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती। जो बारह मास आपकी पूजा करता है, उसके समान धन्य और दूसरा कोई भी नहीं है। जो मन ही मन हर रोज आपका पाठ करता है, उसके समान भी संसार में कोई नहीं है। हे मां मैं आपकी क्या बड़ाई करुं, आप अपने भक्तों की परीक्षा भी अच्छे से लेती हैं।करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

जो भी पूर्ण विश्वास कर नियम से आपके व्रत का पालन करता है, उसके हृद्य में प्रेम उपजता है व उसके सारे कार्य सफल होते हैं। हे मां लक्ष्मी, हे मां भवानी, आपकी जय हो। आप गुणों की खान हैं और सबमें निवास करती हैं। आपका तेज इस संसार में बहुत शक्तिशाली है, आपके समान दयालु और कोई नहीं है। हे मां, मुझ अनाथ की भी अब सुध ले लीजिये। मेरे संकट को काट कर मुझे आपकी भक्ति का वरदान दें।

भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥

हे मां अगर कोई भूल चूक हमसे हुई हो तो हमें क्षमा कर दें, अपने दर्शन देकर भक्तों को भी एक बार निहार लो मां। आपके भक्त आपके दर्शनों के बिना बेचैन हैं। आपके रहते हुए भारी कष्ट सह रहे हैं। हे मां आप तो सब जानती हैं कि मुझे ज्ञान नहीं हैं, मेरे पास बुद्धि नहीं अर्थात मैं अज्ञानी हूं आप सर्वज्ञ हैं। अब अपना चतुर्भुज रुप धारण कर मेरे कष्ट का निवारण करो मां। मैं और किस प्रकार से आपकी प्रशंसा करुं इसका ज्ञान व बुद्धि मेरे अधिकार में नहीं है अर्थात आपकी प्रशंसा करना वश की बात नहीं है।॥दोहा॥

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।

जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।

मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

हे दुखों का हरण करने वाली मां दुख ही दुख हैं, आप सब पापों हरण करो, हे शत्रुओं का नाश करने वाली मां लक्ष्मी आपकी जय हो, जय हो। रामदास प्रतिदिन हाथ जोड़कर आपका ध्यान धरते हुए आपसे प्रार्थना करता है। हे मां लक्ष्मी अपने दास पर दया की नजर रखो।

आसुरी लक्ष्मी देवी मंत्र साधना

Asuri Mantra Sadhana


आसुरी लक्ष्मी मंत्र कवच
प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि उसके जीवन मे पैसों की समस्या न हो और वह सभी भौतिक सुख उसके जीवन मे हों जो उसके जीवन जीने के लिए सहजता से उन सभी वस्तुओं को उपलब्ध करवा दी जो उसे आवश्यक है ,
इसके लिए व्यक्ति मेहनत करता है कर्म ,परिश्रम भी करता है यहां तक कि अपने जीवन को समझने के लिए ज्योतिष उपाय भी करता है मगर उसे उतनी सफलता नही मिलती जितनी सफलता वह चाहता है ।
कोई नौकरी चाहता है, कोई सरकारी नौकरी चाहता है, किसी का व्यापार बन्द है, किसी का कार्य रुक गया है
इन सभी समस्याओं का एक मात्र उपाय है ,
माँ आसुरी लक्ष्मी उपासना और आसुरी लक्ष्मी कवच धारण करना अथवा आसुरी श्री यंत्र की स्थापना करना ।
इससे व्यक्ति के धन के मार्ग बनने लगते हैं ।
उन सभी से सिर्फ हमारा इतना ही कहना है जो यह हम मन्त्र दे रहे हैं आप आसुरी लक्ष्मी कवच ले कर आसुरी श्री यंत्र माला लेकर ही इस मन्त्र का जाप करें ,
माला से स्वयम चमत्कार दिखेगा ।

मन्त्र- ॐ भ्रीं ह्रीं आसुरी लक्ष्मयैः ह्रीं भ्रीं फट

आप दिन में किसी भी समय पूजा स्थल पर बैठ इस मन्त्र का 51 मेला जाप करें ,
कुछ ही दिनों में आपको अपने जीवन मे बदलाव नजर आने लगेगा रुके हुए कार्य पूर्ण होने लगेंगे।
हर तरफ से पैसों के मार्ग बनने लगेंगे जब आपको पूर्ण विश्वास हो जाये तब आप आसुरी लक्ष्मी कवच मंगवा कर धारण कर लें ।
इससे आपके अंदर बनने वाली ऊर्जा तेजी से आपके तरफ धन आकर्षण करेगी और नित्य आकस्मिक धन लाभ के भी मार्ग बनने लगेंगे ।
आसुरी लक्ष्मी माँ लक्ष्मी का वह स्वरूप हैं जिनकी स्थापना दैत्य गुरु शुक्राचार्य जी ने असुर लोक में करवाई थी ,
यही एक तथ्य है असुरों की वैभव सम्पन्नता का माँ आसुरी लक्ष्मी वह शक्ति हैं जिनकी साधना से व्यक्ति का जीवन बदलने लगता है और कभी धन की कमी नही होती ।
बहुत सारे लोग आसुरी शब्द से भयभीत हो जाते हैं उन्हें लगता है कि यह कोई बुरी ऊर्जा है , मगर ऐसा नही है आसुरी का अर्थ यहां तीक्ष्णता से है और असुरों के कठोर तप के बाद मिलने वाले विशिष्ट फल प्राप्ति से है ।
असुरों में भी भगवान के बहुत बड़े भक्त हुए हैं पहलाद,बली, विभीषण आदि यह सब भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे…..!
आसुरी लक्ष्मी कवच धारण करने और आपके जीवन की दुख दरिद्रता का नाश होगा एक अलग सी ऊर्जा आपके जीवन मे धन के मार्ग प्रशस्त्र करेगी साथ ही आप पर हावी हो रही नकारात्मक ऊर्जा से आपकी रक्षा करेगी ।


51 mala jaap करें|

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